तुम बिन ये गुजरता कैसे दिन ये रात गुजरती कैसे है।
तुम बिन ये गुजरता कैसे दिन
ये रात गुजरती कैसे है।
एक अकेली मछली जब
तड़पे बिन पानी जैसे है।
लोगों का मुस्काना भी
अब तो बस मुझको चुभता है।
हँसी-ठिठोली औरों की भी
अब तो दिल को दुखता है।
थामा दिल फिर छोड़ दिया,
ये ज़िम्मेदारी कैसे है।
तुम बिन ये गुजरता कैसे दिन
ये रात गुजरती कैसे है।
आँखों की हालत क्या लिखूँ,
बस राह तुम्हारी तकती है।
सिसक-सिसक मन...
ये रात गुजरती कैसे है।
एक अकेली मछली जब
तड़पे बिन पानी जैसे है।
लोगों का मुस्काना भी
अब तो बस मुझको चुभता है।
हँसी-ठिठोली औरों की भी
अब तो दिल को दुखता है।
थामा दिल फिर छोड़ दिया,
ये ज़िम्मेदारी कैसे है।
तुम बिन ये गुजरता कैसे दिन
ये रात गुजरती कैसे है।
आँखों की हालत क्या लिखूँ,
बस राह तुम्हारी तकती है।
सिसक-सिसक मन...