...

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जलते दिल....
टुकड़ा टुकड़ा बिखरकर देख लिए,कोई जोड़ने ना आया
इतना टूटना भी कम था, कि लोगों ने किरचों में तोड़ना चाहा।

बना दोगे किर्च,अच्छी बात है,तुम्हारी नज़र में अस्तित्वहीन हो जाऊंगी,
लेकिन गर उड़कर पड़ गए आँख में तो तुम्हें बहुत तड़पाऊंगी।

बहुत हो रहा है जरा कभी दिल पे हाथ रखकर सोचना क्या सही था,
जो मैंने चाहा वो गलत था,या जो तुमने किया सही वही था..।


और कितनी रुसवाई सहनी पड़ेगी तुम्हारे लिए कोई हद तो होगी..
किसलिए है तुम्हें इतना गुरूर,मेरे इस फितूर की जद तो होगी।

कसम से अब और इम्तिहान ना लेना,वरना मैं कुछ कर जाऊंगी,
इतनी हिम्मत अब मुझमें नहीं है,ऐसा रहा तो किसी रोज़ मर जाऊंगी।
आकांक्षा मगन "सरस्वती"

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