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कवी!
कवी!
कवी मन है उदार
अपने कला के खजाने से सराबोर,
उसे सिर्फ शब्दों से है सरोकार,
दुनिया मे केवल काव्य ही है उसका अलंकार,
वो करे शब्दों से मन के षड्रिपू का संहार,
प्रिय को देता है अपनी रचनाओं का उपहार,
कवी सिर्फ़ देना जानता है कभी खुशी कभी प्यार!
© Infinite Optimism
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