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मानव के अत्याचारों का परिणाम एक महामारी(कोरोना)
अति अहंकारी हुआ मानव, उसने हर तरफ ऐसा उत्पात है मचाया
मां प्रकृति के प्रत्येक जीव की कच्ची आंतो को है चबाया।

देखो ये मानव का राक्षसी रूप कईयों को तड़पाया और कईयों को ज़िंदा ही खाया।

सांप, चमगादड़, चूहे, बिल्ली, सूअर
भेड़, बकरी, ऊंट, भैंसा, मच्छर
मछली, बिच्छू, गाय, चिड़िया, बंदर
जो पकड़ में आया सब गए पेट के अंदर।

अति अहंकारी मानव ने कर दिया जब नाश प्रकृति के संतुलन का, कर दी बुरी हालत पर्यावरण की
मां से करने लगे गुहार फिर पेड़, पहाड़, नदियां और सभी जीव अपने जीवन की

मां ने सुना करुण क्रंदन फिर और सहा ना गया, सभी ने एक स्वर में कहा है मां इस मानव ने अति कर डाली
तब मां प्रकृति ने ही है संपूर्ण मानवता पर कुपित हो कुदर्ष्टी मानव समाज पर है डाली।

एक क्षण में ऐसा काम किया, पूरी मानवता में मचाया कोहराम
महामारी का रूप धर करने लगी मानव रूपी राक्षसों का काम तमाम।

प्रचंड, प्रबल, काली सी मतवाली महामारी
जहां जहां जाती, वो भूले याद सबको दिलाती।

कई बेगुनाहों का भी फिर हुआ संहार किंतु कुपित मां का इतना भी बुरा नहीं व्यवहार
कितना हमने उसे सताया, मुक - बधिर बने हुए क्यूं देखते थे जो उन राक्षसों का बेजुबानों पर अत्याचार।

ये तो है बस चेतावनी , अब बंद करो ये प्रकृति के महाविनाश का तांडव
अगर रुद्र ने धर लिया रोद्र रूप तो कर देगा संपूर्ण मानवता का अंत उनका तांडव

हर पीड़ा हर दुख हर परेशानी का मां ने उपाय सुझाया है
तुम प्रकृति के करीब होकर तो देखो, सब समस्याओं का समाधान इसके भीतर समाया है।
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""पार्थ"" (M.G.)

© PARTH