...

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कभी कभी...
कभी कभी
कुछ कर गुजरने कि इच्छा
बेतुका सा लगता है।
लगता है कि
जिसे पाने कि चाहत में,
दिन-रात लगा रहा,
शांति से जी न सका हूँ,
अब उसे और न खींचू।
बस छोड़ दूं।
छोड़ दूं उस झूठे सड़क पर दौड़ना,
जो कहीं नहीं जाता।

...पर ऐसा न कर पाने कि
मेरी 'असमर्थता'
मुझे किसी अंधेरे कमरे के
कोने में समेट देता है