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भारी सा है मन
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भारी सा है मन,
जा कहीं ठहरा सा है।
रखा है कैद,
उन ख्वाहिशों सा है।
हो जाए, रिहा भी एक दिन
एक मासूम, सपने सा है।
मगर धुंधले है, ये दूर के सपने,
शायद दोष, उम्र के तकाज़े का है।।
© AshR