...

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अपनों से मिले ग़म
अपनों से मिले ग़म, कुरेदते रहे ज़ख़्म।
रोती रही रुह मयस्सर न हुआ मरहम।

बनाकर अपना कोई कैसे लूट लेता है,
भूल न पाऊँगी मैं इसे जन्म-ओ-जन्म।

अपना कोई रहा नहीं सब...