...

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हुनर
वक़्त की शाख को तोड़ लाने का हुनर रखते हैं
ऐ ज़िन्दगी हम ग़म में भी मुस्कुराने का हुनर रखते हैं

इतने आसानी से नहीं तोड़ पायेगा वक़्त हमें
हम बिख़र कर संवर जाने का हुनर रखते हैं

लहज़ा शीरीं रखते हैं पर मुनाफ़क़त नही रखते
मग़रूर नहीं हैं पर इक दायरा अहद रखते हैं

नफ़रतें कुछ कम कर सकें दिल-ए-इंसान से
इसलिए हम मोहब्बतों का ज़्यादा ज़िकर रखते हैं

फ़र्क़ नहीं कोई समझे हमें अच्छा या बुरा
‘शान’ हम सिर्फ अल्लाह को राज़ी की फ़िकर रखते है..!!

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