कुछ हसीन यादें
कुछ हसीन यादें
याद है मुझको वो गुज़रा हुआ ज़माना,
वो पेड़ों पर चढ़ना और बेरी का झड़ना।
तितली के पीछे वो पहरों भटकना,
बरसाती पानी में छप-छपाक चलना।
याद है मुझको वो गुज़रा हुआ ज़माना।
सर्कस का शहर में वो प्रचार होना,
हमारा चुपके-चुपके फिर माँं को पटाना।
पापा की झिड़की और फिर मान जाना।
याद है मुझको वो गुज़रा हुआ ज़माना।
मास्टर का आना, पहाड़े रटवाना,
पेंसिल के टुकड़ों को छील छील रखना।
चवन्नी अठन्नी थे अपना खजाना।
याद है मुझको वो गुज़रा हुआ ज़माना।
नंदन, चंपक, पराग और चंदामामा,
अपनी किताबों में छुपा छुपा के पढ़ना।
वो चूरन की रेहड़ी पर शोर मचाना,
याद है मुझको वो गुज़रा ज़माना।।
स्वरचित एवं मौलिक
रंजीत कौर,
© ranjeet prayas
याद है मुझको वो गुज़रा हुआ ज़माना,
वो पेड़ों पर चढ़ना और बेरी का झड़ना।
तितली के पीछे वो पहरों भटकना,
बरसाती पानी में छप-छपाक चलना।
याद है मुझको वो गुज़रा हुआ ज़माना।
सर्कस का शहर में वो प्रचार होना,
हमारा चुपके-चुपके फिर माँं को पटाना।
पापा की झिड़की और फिर मान जाना।
याद है मुझको वो गुज़रा हुआ ज़माना।
मास्टर का आना, पहाड़े रटवाना,
पेंसिल के टुकड़ों को छील छील रखना।
चवन्नी अठन्नी थे अपना खजाना।
याद है मुझको वो गुज़रा हुआ ज़माना।
नंदन, चंपक, पराग और चंदामामा,
अपनी किताबों में छुपा छुपा के पढ़ना।
वो चूरन की रेहड़ी पर शोर मचाना,
याद है मुझको वो गुज़रा ज़माना।।
स्वरचित एवं मौलिक
रंजीत कौर,
© ranjeet prayas