...

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“हस दिए थे भूलकर, जमाने में कभी"
उड़ाए थे हमनवों के, ख्वाब, हमने कभी,
अब उसरतो से, बचना है, जान जुदा कर रहे हैं,,

बस, हस दिए थे भूलकर, जमाने में कभी,
फिर पलटने के रिवाज से, कीमत अदा कर रहे हैं,,

अब सोचते हैं हम, कि पूछ लेगा कोई,
नहीं तो खोखली, इस जिंदगी में, समय बर्बाद कर रहे हैं,,

इमारतों के दिल हैं, पत्थर लगे हैं हर जगहा,
जो सौदागर हैं जिस्म के, इनमें वो ही राज कर रहे हैं,,

ये दुनिया के सब लोग हैं, जो दुआओं में हैं, जी रहे,
हम भी कितने अजीब हैं, जो, बदुआओं के साथ, चल रहे हैं....✍️
© #Kapilsaini