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बागी कलम
बागी कलम
रजनी सजनी गा सकता मैं
रति का कर सकता सृंगार
शब्द वान से छू लूं जिसको
कली वो बन जाये कचनार

जीवन के हर रंग भूल के
वह प्रेम रंग अपनाएगी
नस नस में घोलूँ प्रेम सोम
जोगन सा उसे नचाएगी

पर हाय कलम ये बागी है
बस प्रेम प्रेम स्वीकार नही
त्यज दे जीवन जो सभी लक्ष्य
है उत्तम मानव व्यवहार नही

यह मेरी कलम है शेष अभी
हर रंग उकेरी जाएगी
बस प्रेम पिपासा में डुबों को
दायित्व भान करवाएगी
© eternal voice नाद ब्रह्म