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चंद अशआर
ज़ख्म भर जाएं, दाग़ रहते हैं।
ज़ुल्म के कुछ सुराग रहते हैं।
ज़हर इतना भरा है लोगों में,
ज़हन में जैसे नाग पलते हैं।
रात जब चैन से सोना चाहूं,
सारे दुःख दर्द जाग उठते हैं।
बंद कमरों से निकलकर देखो,
ज़िन्दगी के सुराग मिलते हैं।
इश्क़ की रहगुज़र जिन्होंने चुनी,
वही रोशन दिमाग़ बनते हैं।
© इन्दु
ज़ुल्म के कुछ सुराग रहते हैं।
ज़हर इतना भरा है लोगों में,
ज़हन में जैसे नाग पलते हैं।
रात जब चैन से सोना चाहूं,
सारे दुःख दर्द जाग उठते हैं।
बंद कमरों से निकलकर देखो,
ज़िन्दगी के सुराग मिलते हैं।
इश्क़ की रहगुज़र जिन्होंने चुनी,
वही रोशन दिमाग़ बनते हैं।
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