...

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शबनमी एहसास है वो......
उसदिन सुबह ही आकर उसने
छेड दिया प्रेम का तराना
वही याराना..
वही अफसाना...
जाना पहचाना...
भोर हो रही थी समय तो था उठने का, पर
आकर उसने जकड लिया ,हाथो को
अपने हाथो मे पकड लिया
हथेली के बीच होठों को रख दिया
मेरी उंगलियो के अतिरिक्त लाईन को
लबों से छू लिया.. ।
जाग उठे ख्वाब वही
दे गयी पैगाम वही,
चेहरे पे मेरे
अपने गेसूओं को बिखेर दिया ।
लगा यूँ मुझे जैसे
बहारों को निमंत्रण दिया ।।
आवरण सब हट गये वियोग के
आज खुल गये सब ताले मेरे कुयोग के।।
प्रेम के आइने पर धूल नही जमती है
जितने समय लेती है उतनी ही दमकती है
फूल का पराग व्यर्थ नही जाती है
ज्यों ज्यों पुरानी होती है
बेहतरीन इत्र बन जाती है
महक गया जीवन मेरा साथ उसका पाने से
खुशबू से मै महक गया
क्षण भर ही उसके आने से
शरबती आंखों मे देखा था
हजारों सपने
सब मुझपे लुटाके गयी थी वो
अपने वो सुहाने सपने ।।
हर मुलाकात तरोताजा कर देती है
दिन कोई भी हो सुहाना कर देती है
प्रेम के छंद मे उसे फंद बनाने आता है
निगाहे उससे हटती नही
मुझे पाबंद बना देता है
है शबनमी एहसास उसका
जो औरों मे कहाँ होती है
दिल मे वही बैठी है
निगाहोऊ मे वही बसती है