यार मेरा
सर पे बिठा के तो रखा था,
नज़रनों से स्वागत भी किया हर बार।
दिल का टुकड़ा जो था।
वो था यार मेरा।
ना जाने कौन सा शैतान सर चढ़ा,
ना जाने किसका वो मनहूस साथ था,
जो दिल कुरेद के चलता बना,
यार मेरा।
अरे ज़ालिम,
ज़रा भी परवाह नहीं थी मेरी,
जो यूँ ही मुह मरोड़ के तू चलता बना।
रिश्ता ये...
नज़रनों से स्वागत भी किया हर बार।
दिल का टुकड़ा जो था।
वो था यार मेरा।
ना जाने कौन सा शैतान सर चढ़ा,
ना जाने किसका वो मनहूस साथ था,
जो दिल कुरेद के चलता बना,
यार मेरा।
अरे ज़ालिम,
ज़रा भी परवाह नहीं थी मेरी,
जो यूँ ही मुह मरोड़ के तू चलता बना।
रिश्ता ये...