...

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यार मेरा
सर पे बिठा के तो रखा था,
नज़रनों से स्वागत भी किया हर बार।
दिल का टुकड़ा जो था।
वो था यार मेरा।

ना जाने कौन सा शैतान सर चढ़ा,
ना जाने किसका वो मनहूस साथ था,
जो दिल कुरेद के चलता बना,
यार मेरा।

अरे ज़ालिम,
ज़रा भी परवाह नहीं थी मेरी,
जो यूँ ही मुह मरोड़ के तू चलता बना।

रिश्ता ये अब अजीब सा हो गया है,
ना जाने कौन से कर्म का ये फल था,
जो पीठ पीछे बेधड़क छुरा घोप के
चलता बना, यार मेरा।

अरे गुलाब सा महकता था,
बेला सा खुशनुमा भी था।
ना जाने किस नामुराद की लगी नज़र,
कि पत्ता पत्ता ही झड़ गया।
सूरज ढलने से पहले ही
खुदा को रुखसत हो गया,
यार मेरा।

बडी उम्मीदों से नक्काशा था,
अपनी अलबेली यारी का घड़ा।
ना जाने किस धुन में
बिन पैंदी का लौटा बनके रह गया,
यार मेरा।
© Kunba_The Hellish Vision Show

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