...

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चिडियां - एक मां
चीँ - चीँ चिड़ियां बैठ डाल पर,
कोई तराना अपना गाए,
नन्हे चूजों की मां वो भी ,
मां के सारे फर्ज निभाए,

यहां -वहां ,भटक - भटक कर,
खाना जब ये ढूंढ के लाए,
खाना जब प्रचुर मिले ना,
तो ये खुद खाना न खाए,

तड़फें ना बच्चे यूं भूख से,
सारा खाना उन्हें खिलाए ,
मां बनने पर देखो खुद को,
कैसे भूल सी वो तो जाए,

बच्चों के आराम के खातिर
कहां आराम वो पाती है ?
दिन -रात ,सर्दी या गर्मी
बस उड़ती ही जाती है,

जब तूफ़ान को आते देखे ,
बच्चों को घबराते देखे,
पंख फैलाकर ,पंखों में वो ,
उनको तब छुपाती है,

बारिश जो बरसे जोरों से
डरती है ना भींगे बच्चे,
खुद की ना परवाह करे वो,
खुद छत बन जाती है ,

इंसान हो या हो जानवर,
मां तो मां ही होती है
बच्चों को देखकर दुख में ,
मां ही दुखी होती है ....

मां ही दुखी होती है ....


© Munni Joshi