...

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तुम बिन मेरा एक पल नही
एक रौशनी थी हल्की सी,
रात भर मेरे आस पास !
महक जानी पहचानी सी,
मेरे मन को बहका रही थी!

क़ोशिश कि ... बार बार,
नही सोचूंगी ... अब नही !
करवटों में पूरी रात बीती,
और बंद पलकों में नींद नही!

सपना ...नही, ये सपना नही !
हकीक़त ...नही, वो भी नही !
फ़िर कैसी है ये ख़्वाहिशें ?
जिसकी कोई मंज़िल नही !

मैं कौन हूँ .... मैं कहाँ हूँ ....?
क्या मैं तुममें कहीं शामिल नही ?
मन ने कहा, मुझमें तुम ही तुम हो!
तुम्हारे बिना मेरा तो एक पल नही !

बीती रात ... और सेहर कह गया,
नदी के दो किनारे कभी मिलते नही !