कोहरे की धुंध
निकल पड़ा पथ पर था वो बिल्कुल अकेला
ना कोई साथी ना इंतजार ना था कोई झमेला
इक इक कदम वो बढ़ाता जाता
सामने से धुंध हटाता जाता
ना कोई डर ना किसी को खोने का खौफ़
इतनी बहादुरी इतना बिश्वास
कैसे है इक साधारण इंसान के पास
हमारे मन में इक इच्छा जागी
उसकी कहानी सुनने को उसकी तरफ भागी
हम बोले इक पल रुक जाओ
हे मुसाफिर हमें कुछ जानना है
इक पल ठहर जाओ
हमारी बात सुनकर लगे पलट कर देखने
हाँ हम रोके थे हम उनसे लगे कहने
हमारी बात सुनकर वो वहीं ठहर गये...
ना कोई साथी ना इंतजार ना था कोई झमेला
इक इक कदम वो बढ़ाता जाता
सामने से धुंध हटाता जाता
ना कोई डर ना किसी को खोने का खौफ़
इतनी बहादुरी इतना बिश्वास
कैसे है इक साधारण इंसान के पास
हमारे मन में इक इच्छा जागी
उसकी कहानी सुनने को उसकी तरफ भागी
हम बोले इक पल रुक जाओ
हे मुसाफिर हमें कुछ जानना है
इक पल ठहर जाओ
हमारी बात सुनकर लगे पलट कर देखने
हाँ हम रोके थे हम उनसे लगे कहने
हमारी बात सुनकर वो वहीं ठहर गये...