अंजाम से अंजान बैठी वो रूह कोई..
निगाहें वफाओं से तलाश रही थी
पर होठ बेवफाओं का लफ्ज उनके
भरी मेहफील में बाँट रही थी..
अंजाम से अंजान बैठी वो रूह कोई
दिदार की सपने सजा रही थी..
किरदार ऐसे पेश हो रहे थे..
जैसे..
अजनबी से बाजार में अपने बिक...
पर होठ बेवफाओं का लफ्ज उनके
भरी मेहफील में बाँट रही थी..
अंजाम से अंजान बैठी वो रूह कोई
दिदार की सपने सजा रही थी..
किरदार ऐसे पेश हो रहे थे..
जैसे..
अजनबी से बाजार में अपने बिक...