...

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शोर
रात के अंधेरे का शोर था
पता नहीं आवाज मै इतना जोर था
रूह तक काप गई थी
लगता था मानो आशिक़ी का रोग था

रोने के अलग शोर था
आवाज मै थोड़ा सा रोर था
दिमागी हालत का झोल था
लगता था मानो आशिक़ी का रोग था

हैरत मै ज़िन्दगी और समय मौन था
काफी समय से पूछने मै कौन था
हालात देख के पूछ आया मै
पाता चला आशिक़ी का ही रोग था

कपकपी का यूए घोल था
बदन से जाद्दा सासों का शोर था
मोहहबत के जंग का अजीब घोल था
रूह रोती रही और जान का ना कोई मोल था
पता चला आशिक़ी का रोग था

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