...

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शब्द वो मिलते नहीं।
निगाहों से निगाहों की जंग छेड़ी
तीर सीधे दिल में जा लगी।

आह के जगह वाह निकली
पीर कुछ ऐसे पिघलती आई।

खुद में खुद मिलते नहीं हम यार
धीर आख़री अपनी मर्यादा खोई।

बहुत चाहा ज़ख्म दिल का दिखाए,
मीर नसीबा उन्हें बस नादानी लिखी।

सीने में दफ़न जज़्बात आग सी धधकती रही,
नीर आंखों का आंचल में ना समाई।

© Sunita barnwal