...

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माँ का हाथ लगाना काफी है
हाथ पकड़ के बचपन में,
माँ चलना हमें सिखाती है,
भूख मिटती बस उसी से है,
माँ खाना जो पकाती है.

हर बच्चा सोता है आराम से,
जब माँ कहानियाँ उसे सुनाती है,
छूता है वो आसमान को,
माँ जब गोद में उठाती है.

माँ जागती सबसे पहले है,
सबके बाद मैं वो सो पाती है,
देखती है दर्द वो बच्चों का,
और बच्चों से पहले रो जाती है।

माँ का दिल दुखाया है जिसने,
बड़ी से बड़ी सजा ही उसकी माफ़ी है,
तमाम दर्द इस बदन से रुक्सत हो जाते हैं,
प्यार से बस माँ का हाथ लगाना काफी है।
© Sanad Jhariya