समय
समय कहु या मरूभूमि की बालू रेत,,
ना चाहकर भी हाथो से निकलता ही गया,,
कभी गेरो को किया दर-किनार
कभी अपनों को
नजर अंदाज
मे जाने...
ना चाहकर भी हाथो से निकलता ही गया,,
कभी गेरो को किया दर-किनार
कभी अपनों को
नजर अंदाज
मे जाने...