...

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वह दर्द प्यारा सा..
कभी आकाश में उड़ती हूँ मैं मुक्त विहंग जैसे !
कभी भय चकित हो जाती हूँ शांत हिरण जैसे!
कभी सागर के सीने पर उछलती तरंग जैसी !
कभी खिलते फूलों में मंडराती तितली जैसी !

मेरे मन की भावनाएं हो रही है परिवर्तित क्षण क्षण,
मेरे शरीर में पनप रहा है एक अंकुर, एक नव जीवन!
कितने सपने बुन लेती हूँ मैं...