...

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वह दर्द प्यारा सा..
कभी आकाश में उड़ती हूँ मैं मुक्त विहंग जैसे !
कभी भय चकित हो जाती हूँ शांत हिरण जैसे!
कभी सागर के सीने पर उछलती तरंग जैसी !
कभी खिलते फूलों में मंडराती तितली जैसी !

मेरे मन की भावनाएं हो रही है परिवर्तित क्षण क्षण,
मेरे शरीर में पनप रहा है एक अंकुर, एक नव जीवन!
कितने सपने बुन लेती हूँ मैं कल्पनाओं की धागों से,
रोज़ नये नये ख़याल आते रहते है .. बेटा या बेटी !

वो बिलकुल मेरे जैसे ... मेरा अंश ... मेरी परछाई !
नौ महीने कोख में ...
उससे अकेले में कितनी बातें कर लेती हूँ!
उसने जवाब भी दिया .... कोख में लेकर अंगड़ाई !

एक औरत के जीवन में सबसे सुन्दर अनुभूति ...
कुछ पलों का वो असहनीय दर्द बहुत प्यारा लगता है,
जब पहली बार ....
अपने बच्चे की रोने की आवाज़ कानों में गूँजती है!
एक औरत सम्पूर्ण हो जाती है ...
प्रसव पीड़ा से गुज़र कर जब वो "माँ" बन जाती है।