...

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प्रेम
तुम्हारे प्रेम में रंगकर मे ,हर एक गीत गाऊंगी।
सजा अंतश मे अपने , बला हर एक उतारूंगी।

तुम्हारे प्रेम का अनुबंध हो , गर ज्ञात तुमको भी ।
आओगे क्या ?
मैं जिस क्षण भी तुम्हे मिलने बुलाऊंगी ।।
व्याप्त करके वचन अपने ,तुम सारे काम तजकर के ।
मेरी एक आवाज पर , घड़ी अंतिम सजाओगे ।
विरह की ये व्यथा , भी लिख रही हूं ।
पर कागज पुराना ।
जरा तुम याद रख लेना , मिलन अंतिम हमारा ।
नयनों में दीदार की आशाएं सजाए।
आओगे क्या?
मैं जिस भी क्षण तुम्हे मिलने बुलाऊंगी ।।




© sarthak writings