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बेइंतहा चाहकर भी ऐसा क्यों हुआ......!!

रहम कर ए- दिल निहाद तू मुझपर, हर बार मेरी मोहब्बत रोई, ऐसा मेरी इन मासूम आंखों के साथ क्यों हुआ ...?
खुदगर्ज बना बैठा है मेरे लिए यह वक्त तुम्हारा , झुठी हुई मेरी बेइंतेहा मोहब्बत , यह भी होना ही था ऐसा ही क्यों हुआ..?
साथ ना छोड़ेगी मुझ पर लगी है ये मोहब्बत की बदनामिया, छोड़ चली गई खुशियां सारी, हर तरफ से गम मेरा ही क्यों हुआ...?



बेहतरीन लगता है तुझे मेरी बेइंतेहा चाहत पर हंसना, चारों तरफ से मेरा ही तमाशा क्यों हुआ..?
बड़ी ज़ालिम- सी बनी बैठी है किस्मत मेरी, ये मोहब्बत में हाल- ए- बेहाल बार-बार मेरा ही क्यों हुआ......?
क्या ख़ूब शातिर है ये मोहब्बत की अदाएं भी ...खामोशी, तलब, चाहत ....,
बहुत जुल्म किए ए-दिल-निहाद तूने मुझपर, हर बार तेरा निशाना मेरा दिल ही क्यों हुआ....?



ए- सनम बेकसूर हूं मैं , किसी और के गुनाहों का हकदार मेरा अरमान क्यों हुआ ...?
तोड़ा जा चुका है कोना- कोना मेरे दिल का, इन बिखरे टुकड़ों पर भी आज सितम तेरा क्यों हुआ...?
मुश्किले बहुत है अब मोहब्बत को पाने की राहों में.....,
इन खामोश दिल की वादियों में, आज बिन आवाज़ ये शोर कैसे और क्यों हुआ............?


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