...

1 views

आर्यमौलिक अल्फाज़
आर्यमौलिक अल्फाज़


पढना चाहूं-ओ-ग़ालिब तो तुझे पढ़ नही पाता..!
डूबा सा रहता हूं ख्यालों में मैं लिख नहीं पाता..!!

✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

कुछ आशिकाना लोग भी कैसी हरकतें कर जाते हैं...!
जब लगा लो दिल उनसे तो वो इश्क़ से मुकर जाते हैं....!!
✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

ये आशिकाना लोग भी नज़र-ए-हरकतें कर जाते हैं..!
गर मिला लो नज़र उनसे तो इश्क़ से मुकर जाते हैं..!!

✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

तन्हाईयों की हद से इसलिए गुज़रता हूं
के चाहत-ए-हसरतों की हदें बेहद ना हो...!!

✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

जब मैंने तेरे अश्क़ में खुदको में देखा
तभी मैं खुद की खोज में निकल पड़ा..!!

✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

हैं इंसान मुसाफिर इस ज़िन्दगी-ए-जहां में सभी यहां
कुछ ज़माने में ठौर पाते हैं कुछ वेमुकम्मल ही रह जाते हैं...!!

✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

ना आदमी हो रहा हैं औरत के लिए ना औरत हो रही हैं अपने आदमी के लिए...!

बदल रहा हैं यहां हर इंसा-ए इंसा ज़माना-ए-ज़मानगी की आवारगी के लिए..!!

✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

अनजान हुए कई मिरे अपने लोग मेरे ही चेहरे से...!
जब से मिलने लगे हैं मिरे अपने लोग तमाम गैरों से....!!

✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️
इन नज़रो के वार-ए-ज़ख्म ताउम्र कभी भरते नहीं "मौलिक"
ये वार किसी खंज़र का होता तो कब का भर गया होता...!

✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

हम ढूंढ़ते रहे आदमी-ए-आदमी में इंसानियत
पर आदमी ने इंसानियत तो ताक पर रखी थी...!

चेहरों पे हर चेहरों की बनावटी थी मुस्कुराहट
जुबा में झूठ के अल्फाज़ो की चाशनी रखी थी...!!

✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️


संस्कृति और संस्कार को देशी ही बचा पाएंगे
शहर के लोग जिहादी कुत्तों से नुचते जाएंगे

✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️
देश की बेटी, संस्कार और संस्कृति को कट्टर हिन्दू ही बचा पाएंगे...!!
✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️
देश के सेकुलर की आस्था रखने बाले हिन्दू की बेटियों को नुचवाएंगे...!!
✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️
ख़ौफ़ में हैं निकलता नहीं उस शहर में आदमी...!
पहचानता ही नहीं शहर में आदमी को आदमी..!!
✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️
इश्क़ वालों की तमाम वस्तीयां आवाद थी
हम जो गुजरे वहां से तो गुनहगार हो गए...!

घूरती रही तमाम नज़रे मुझको झारोखों से
हमने जो उन्हें देखा तो कसूरबार हो गए...!!

हमें तो जालिम ही कहते हैं लोग ज़माने के
जुल्म उनके इश्क़-ए-वार एतवार हो गए..!!
✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

नजदीकियां अक्सर वेकद्र ही रही
फांसले रखों तो कद्र पता चलेगी...!!

✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

नोक झोक, गिले तकरार सब मोहब्बत के हिस्से हैं...!
लगा लो गर इन्हे दिल पर तो तन्हाइयो के किस्से हैं..!!

✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

ये दर्द हैं जो इस दिल से निकलता नहीं
देख कर आंसू भी तो कोई पिघलता नहीं...!!

मिल गए हो क्यों इस राह के अनजाने में
धड़कता दिल क्यों नहीं तुम्हारा मचलता नहीं..!!

लौट जाओ भी अब तुम जिंदगानी में आपनी
देख कर तिरि नफरत दिल मेरा सम्हलता नहीं...!!

ए दिल ना लगा तू इन वेगाने दिलों से ये दिल
दर्द दिलों का भी देख, वो खुद भी पिघलता नहीं..!!

दर्द तिरा भी हैं शामिल मिरे इस दिल-ए-दर्द में
दर्द के इस ज़माने से ये दिल क्यों निकलता नहीं..!!
✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️
कितना जीते हैं कितने मर मर के जीते हैं लोग
कौन पूछता हैं गम किसी का इस शहर के लोग
दर्द-ए-मौज की तन्हाइयों के सफर में मरते हैं लोग
हसरतों के पानी में जहर की शराब को पीते हैं लोग
✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

पूछा नहीं किसी ने के जुल्म क्या हैं हमारा
लोगों की बातों में आके लोगों ने हमको हैं मारा
✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

बहुत खुश रहा करते थे के चलो सब तो हैं हमारे
किस्मत के फेर में सब फिर गए हम से ही हमारे
✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

हम से मिलते ही लोग अब क्यों इतना खफा हो जाते हैं

उनकी दोस्ती की तलबगार में हम क्यों गुनाहगार हो जाते हैं

✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

ए खुदा किस तरिका-ए-दुआ करूं तुझे मनाने को
क्यों इंसा-ए-इंसानियत नहीं देता तू इस ज़माने को

✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

घन घोर घटा बन ये जमकर शहर-ए ज़मी बरसते हैं
हैं जिस्म-ए-आग ऐसी के नाम-ए-इश्क़ में भटकते हैं

✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

आज कल दिल को कम जिस्म को ज्यादा छूते हैं लोग...!
भूले जो एहमियत-ए-तहज़ीब की वे-एतवारगी के लोग..!!
✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

अभी भी आवाद हैं तीरे आने की वो खुशबू
तुम जो चलें गए हो महका के मुझको.....!!
✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

तेरे आने की हर आहट का मैं पहरे दार हूं
की जो तुम से मोहब्बत का मैं वफादार हूं

✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

लोग उजाले में रह कर भी हैं कितने अँधेरे में
इसलिए चिरागों को जला रखा हैं उजाले में
भूल गए हैं लोग चेहरे अपने ही अब उजाले में
ढूंढ़ते हैं फिर भी रास्ता लोग उजाले में

✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

हैं कोई सर्वेश ऐसा के जो इंसा-ए-खुशिया वहाल कर दें
एक बार इन मुफलिसों की हसरतों को खुशहाल कर दें
✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

ये शायरियां मेरी मुझे बहुत सुकून देती हैं
हर वक्त की तन्हाइयों में मेरे संग रहती हैं

✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

अब इस मुलाक़ात में हमें कोई नदामत नहीं हैं
मिलने का गुनाह हमारी चाहतों ने कर दिया...!

✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

नशा इश्क़ का सारा उत्तर गया
जब मोहब्बत ने ही वार किये

✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

ऐसा भी क्या करते हो के अब हम याद नहीं आते
काश याद करते जो तुम तो हम तुम एक हो जाते
✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

यादों में सजोये ख्वाब कभी हक़ीक़त नहीं होते
हो या ना हो हक़ीक़त यादों की अब हम नहीं रोते
✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

दौलत वालों से दिल की दिल्लगी होती हैं
इश्क़ वाले तो खामखा यहां बर्बाद होते हैं..!

जिस्म की तो अब यहां नुमाइशगी होती हैं
पर्दे वालों को यू ही अक्सर बदनाम करते हैं..!!

✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

छू गयी हैं कुछ बातें अपनों की मिरे दिल को
जल्द से छूना ही होगा मुझे अपनी मंजिल को

✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

हर बार हर जनम में ये तिरंगा और मां के आंचल की ममता का ये परचम हो...!
झुका दूंगा दुनियां सारी वतान के क़दमों में, हर जनम में मां की यही कोख हो...!!
✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

सोच रहा हूं अपनी ही आवाज़ को सोचते वक़्त..!
जो सुनी ना गयी कभी आवाज़ मिरि चीखते वक़्त...!!

✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

यहां दिल लगाना भी तो एक कला हैं....!
गर फंस गए मोहब्बत में यारों तो बला हैं....!!
✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

वो लोग भी अदब के हमको अब मिले भी कहां
जो मिले भी हमको वे-अदब हमको मिले हैं यहां

खुद की अदबगी पर कितना भी एतवार कर लूं
फ़टे हैं जो मन के ये कपड़े हम अब सिले भी कहां

ये ज़माना भी हैं अब तो दस्तूर-ए-मिलन का यहां
जो बिछड़े थे लोग आज वो हम से मिले भी कहां

हुए जो हम रुख़सत वो आए हैं मिलने हम से यहां
वो रो के मिलते हैं हमसे अजीज-ए- कायदे से यहां

वो लोग भी अदब के हमको अब मिले भी यहां
धो रहे जो गिले-शिकवे अपने आंसुओ से यहां

✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

उसकी सूरत-ए-शिकन सुकून से रहने नहीं देती
हालत-ए-इश्क़ की उलझन मिरि कहने नहीं देती

✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

मिरि तमन्नाए और जख्म सब पुराने हो गए
तुम से मिल के बिछड़े हमको ज़माने हो गए

✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

या तो मुझ में जीने की कला नहीं हैं...!
या फिर ज़माने में इंसा भला नहीं हैं...!!

✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

इंसान -ए- जिस्म को अब शिला मानता हूं...!
नर्मियत हो हर इंसा में यही दुआ मांगता हूं...!!

✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

जिस्म के हर हिस्से में जख्म-ए निशान बना हैं..!
शहर में लोगों में आज कल नफरतों की हवा हैं..!!

✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

पूछते हैं मेरे शहर के लोग के मेरा शहर कहां हैं
क्या कहूं मैं उनसे के खामोशियों में मेरा जहां हैं

✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

दिन भी गुजरा रात भी गुजरी मुलाक़ात की वो बात भी गुजरी
ताकतें रहे राहें उनकी वो सवर के अनदेखा करके हमें गुजरी

✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

न वो अब दिखाई देते हैं न सुनाई देते हैं
कानों में गूंजती हुई वो इक तन्हाई देते हैं

दब गयी किताबों में कितनो की कहानियां
वो ज़माने के शब्द भी न अब सुनाई देते हैं

मिलते तो हैं लोग बस अब फर्जगी के लिए
एहसास अपनेपन के न अब दिखाई देते हैं

यूं तो दिलों से दिल के करीब हैं बहुत लोग
लफ़्ज़ों में रूखे अब भी सब दिखाई देते हैं

बेपनाह कोलाहल में हैं अब भी बहुत लोग
फिर भी क्यों लोग मूक से यहां दिखाई देते हैं

वो निकल गए जो अंत के सफर में कई लोग
जो ना अब दिखाई देते हैं और ना सुनाई देते हैं

✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

इस इश्क़ में ये शौक के आंसू नहीं हैं..!
बात दिल की जो हमने कभी कही नहीं हैं...!!

बात आंसुओ से कही तो बहुत गयी हैं..!
आवाज़ आंसुओ उसने मिरि समझी नहीं हैं...!!

✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

जल रहा हूं मैं तिरि हर महफ़िल में शमा की तरह
कब तक इस दिल को बड़ा रखूं आसमां की तरह

✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️✴️

30/11/2022

क्रमशः





© DEEPAK BUNELA