...

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भूलोगे ख़ैर-ओ-ख़बर धीरे-धीरे
तुम पर भी होगा मोहब्बत का असर धीरे-धीरे
भूलोगे तुम भी अपनी ख़ैर-ओ-ख़बर धीरे-धीरे।

इब्तिदा-ए-इश्क़ में बहुत ख़ुश नज़र आते हो
हिज़्र-ए-बेचैनी भुगतोगे तुम भी सहर धीरे-धीरे।

मुसलसल मुलाकातें, बातें, राब्ता बड़ा मज़ा है
जाने कब ये दौर किस दिन जाए ठहर धीरे-धीरे।

मोहब्बत की ख़ुश-गवारी खुलकर जी लो अभी
बन जाएंगी कब जाने खुशियाँ तेरी ज़हर धीरे-धीरे।

"गौरव" वक़्त रहते अभी भी सँभल जाओ वर्ना
भटकोगे दर-बदर फिरोगे शाम-ओ-सहर धीरे-धीरे।

© Gaurav J "वैरागी"

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