बचपन की यादें
चल फिर बैठे, नदी किनारे
खोजे बचपन, बिखरे तारे
जहाँ गीली मिट्टी महकती थी
नन्ही गौरैया चहकती थी
छोटे से आँगन में
समाते सारे अपने प्यारे
चल फिर..
स्वाद चूल्हे की रोटी का
माँ की मीठी झिड़कियाँ
ठंडी हवा की थपकियाँ
गाते लोरी मिलकर सारे
चल फिर...
कंचों और गुड़िया के खेल
हर आने वाले से मेल
बढ़ते रहे जैसे अमर बेल
अद्भुत दिन थे, हमारे तुम्हारे
चल फिर...
मजेदार साबू और चाचा चौधरी
अनगिनत कहानियाँ दादी नानी की
खेलना अक्कङ बक्कङ, अंताक्षरी
बातें करना सांझ सवेरे
चल फिर...
बचपन पीछे छूट गया
गुज़रा वक़्त रूठ गया
अब भी याद आते हैं दिन जो
अपनो के साथ, अपनेपन से गुज़ारे
चल फिर बैठे, नदी किनारे
खोजे बचपन, बिखरे तारे ।
चित्रा बिष्ट
(मौलिक रचना)
© All Rights Reserved
खोजे बचपन, बिखरे तारे
जहाँ गीली मिट्टी महकती थी
नन्ही गौरैया चहकती थी
छोटे से आँगन में
समाते सारे अपने प्यारे
चल फिर..
स्वाद चूल्हे की रोटी का
माँ की मीठी झिड़कियाँ
ठंडी हवा की थपकियाँ
गाते लोरी मिलकर सारे
चल फिर...
कंचों और गुड़िया के खेल
हर आने वाले से मेल
बढ़ते रहे जैसे अमर बेल
अद्भुत दिन थे, हमारे तुम्हारे
चल फिर...
मजेदार साबू और चाचा चौधरी
अनगिनत कहानियाँ दादी नानी की
खेलना अक्कङ बक्कङ, अंताक्षरी
बातें करना सांझ सवेरे
चल फिर...
बचपन पीछे छूट गया
गुज़रा वक़्त रूठ गया
अब भी याद आते हैं दिन जो
अपनो के साथ, अपनेपन से गुज़ारे
चल फिर बैठे, नदी किनारे
खोजे बचपन, बिखरे तारे ।
चित्रा बिष्ट
(मौलिक रचना)
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