...

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इब्तिदा-ऐ-इश्क़!
कहते हैं इजाज़त लेकर वो उनसे बात करते हैं,
कुछ इस तरह से वो दिन की शुरूआत करते हैं!

सैकड़ों खामियाँ हों उसमें उसे मन्ज़ूर हैं वो सब,
इस मुलाक़ाती वसीले पर वो अब भी नाज़ करते हैं!

कहाँ बाक़ी हैं अब उसको दीगर शौक़ ज़माने के,
उस एक ही शौक़ पर वो सारे शौक़ असर-अन्दाज़ करते हैं!

यक़ीनन बहुत ही हसीन होंगी वादियाँ उसकी (जन्नत),
मकीन जिसके ज़माने को नज़रअन्दाज़ करते हैं!

मैंने देखा नहीं उसको मगर बहुत ही खास होगी वो,
क्योंकि पसंद अपनी ज़माने में वो अपनी-आप रखते हैं!
© alfaaz-e-aas