...

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कोई नहीं समझता
मन बेचैन सी हैं
बड़ा ही उदास सा हैं
क्या करूं, कहा जाऊं ,
किससे कहूं अपनी मन की बात
कुछ समझ नहीं आ रहा
इतनी उलझ गई हूं मैं
अपनी मन की दलदल में
इस सही और गलत में
जैसे मैं उलझ कर रह गई
कोई नहीं समझता जज़्बात को
सब अपने मन की सोचता हैं
किसी को कह भी नहीं सकती अपनी मन की बात
सब अपनी मन की सोचता हैं
सबको गलत और बेकार लगती हैं मेरी बातें
बेहद बुरी लगती हूं मैं सबकी नज़रों में
दुनिया बहुत मतलबी हैं
किसी के लिए हम बस एक मज़ाक सी लगती हूं
कोई कभी ये समझने की कौशिश नहीं करता की हम किस हाल में हैं , किस हालात से गुज़र रहे हैं ,,
कितनी दर्द सहन कर रहे हैं , कितनी घुटन होती हैं मुझे ,,अंदर से मर रही हूं मैं , कैसे अपनो के बीच होते हुए भी अकेला महसूस कर रही हूं मैं ,,
दुनियां बहुत मतलबी हैं सब बस अपनी खुशियां ढूढती हैं
किसी को किसी की जज़्बात की कोई क़दर नहीं हैं ,,

💔💛