...

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प्यार और नफ़रत….


मुझे बोलने दिया जाए,
मैं कुछ बोलना चाहता हूँ ।
किसी की प्यार की वजह से और,
किसी की नफ़रत को इन्साफ़ से तोलना चाहता हूँ।

प्यार इतना ठंडा होता है ।
कि जलती आग को बुझा देता है।
नफ़रत की आग से तो अक्सर,
हरा भरा जंगल भी जलकर ख़ाक हो जाता है।

माना के प्यार और नफ़रत की बनती नही,
मगर! एक शरीर में इकट्ठे रह लेते है।
दिमाग़ और दिल भी इनके बीच फँसे हुए है।
पता नहीं क्यों इनकी हर बात को ज़र लेते है।

मैं लिख रहा हूँ अपनी क़लम से,
नफ़रत और प्यार को एक साथ इक काग़ज़ पें…
मैं लिखना चाहता हूँ इनके लिये,
“जिंद” अब यह मिल जाए एक साथ इक काग़ज़ पें…


#जलते_अक्षर
© ਜਲਦੇ_ਅੱਖਰ✍🏻