...

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मेरा बचपना है की मारता ही नहीं
दुनिया का ये रंग मुझपर चढ़ता ही नहीं,
मेरे अंदर का बच्चा मरता ही नहीं।।

इस तरह भरी हुई है मासूमियत मुझमें,
दुनिया कितना भी ठग ले फर्क पड़ता ही नहीं।।

जिंदगी जीने में इतना व्यस्त हूं मैं,
कल की चिंताओं से साला ये मन डरता ही नहीं।।

तकलीफ होती है तो दहाड़े मारकर रोता हूं,
तन्हाई का पता नहीं हां अकेला होता हूं तो खूब सोता हूं,
दुनिया की तरह तन्हाई में आहे भरता ही नहीं

दुनिया बहूत सुनाती है मुझे, सुनकर पल भर में भूल जाता हूं मैं,
अपनी मस्ती में मैं किसी बात की परवाह करता ही नहीं।।

अपना कहकर गाला काट देती है ये दुनिया,
मैं किसी को अपना समझता ही नहीं।।

किसके पास वक्त है एक ही बात को पकड़ कर रोने का,
जहां मेरा मन नहीं लगता मैं वहां ठहरता ही नहीं।।

हां दुखियारो की दुनिया में खुश इसीलिए तो हूं मैं
मेरे अंदर का बचपना मारता ही नहीं ।।

© @badnamLadka

Being childish might sound crazy to the world but you can be happy only if you stay childish. one should live with the same innocency like one had in their childhood. There is no difference between a sage and innocent kid.


P.S: Yup I'm the guy in the middle.