...

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मदारी
🌹राह में आते है मेरे जितने भी पड़ाव
पूछते हैं मुझसे अपनी मंजिल तो बताओ

खड़े फिर एक नए मोड़ पर हम हैं यहां
बोलो अब आगे तुम्हे और जाना है कहां

उलझ गया है यूं हर धागा एक दूजे से
वक्त लगेगा मुझे अभी सुलझाने में

ये किसके कहने पर यहां पर्दा उठता और गिरता है
ये किसके इशारे से तमाशाई, तमाशा बनता हैं

हम कठपुतली बने जिसके इशारों पर नाच रहे
कौन है वो जिसने है हमारे डोर धरे

वो कौन है जिसने लिखी है हमारी कथा
वो कौन है जो नियति हमारी है तय करता

कहते थे लोग चलो बस कुछ और दूर तलक
मंजिल पास ही है बस दो कदम दूर है फलक

जाने कौन सी दौड़ में अब हम तुम है
थक कर सुस्ताने को भी कहां राजी हम हैं

चलते – चलते थक गई है मेरी रूह भी अब
ना मंजिल का पता ना अब है चलने का सबब

मेरी नजरें तलाशती है वो दयार
बैठ कर जहां मिले जी को करार

ठोकरों से घायल तुम भी थोड़ा हम भी हैं
जो घाव है तन–मन का वही तो मरहम है

जिंदगी मुट्ठियों से एक रोज रेत सी फिसल जाएगी
सांस की डोर भी एक रोज टूट जाएगी

उलझनों के गांठ यूं ही नहीं सुलझने वाला है
सिलसिला ताउम्र उलझनों का यूं ही चलना है

वो मदारी जब तक चाहे खेल दिखाएगा
हमको तुमको वो इशारों पर नचाएगा

जिस दिन थक कर तू गिर जाएगा
इस खेल को खिलाने वाला जीत जाएगा 🌹
© Ranjana Shrivastava