...

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ग़ज़ल-2
कहते हैं मज़हबियत खतरें में हैं,
वास्तव में इंसानियत खतरें में हैं।
हम उनके लिए लड़तें हैं,
वो हम पर ही हँसते हैं।
मैंने ये किस्से आम देखें हैं,
सत्ता के ग़ुलाम तमाम देखें हैं।
ये क्या हो रहा है,
जम्हूरियत सो रहा है।
© Saddam_Husen