...

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नया दौर
गाँवों के देश में
पीछे छूटते जा रहे हैं गाँव
अब झूले पेड़ों पर नहीं
छतों पर लगते हैं
अब मेले गाँवों में नहीं
शहरों में सजते हैं
कईयों को पता भी नहीं अब
कुऐं और तालाब क्या होते हैं?
क्या होती है,बैलगाड़ी
अब तो कबड्डी भी
गाँवों में ना रही
छोटे छोटे खेल भी ना रहे।
खेल अब शहरों में चले गये
कुछ टी वी पर
खेती भी होने लगी
शहरों में ऊँचीं छतों पर
गरीबों को मयस्सर न रही सब्जियां
दूर से देखकर,अफसोस करते हैं
शिक्षा भी गाँवों से निकल
शहरों में सिमट गई।
पढ़ने में खर्च है,संभव नहीं गाँव में
समस्त ज्ञान शहरों में है
धन से खरीद लेता है शहर
गाँव भी बदला है
सबके हाथों में मोबाइल है
संगीत है,सिनेमा है,आनंद है
नयी व्यवस्थाऐं भी है
गाँव को मजदूर बना देना है
शहर की गुलामी के लिए
सेवा के लिए
यहाँ प्रतिभा नहीं होती
सब संपन्न नहीं हो सकते
अर्थव्यवस्था सुदृढ़ करने के लिए
गाँवों को मजदूर बनना होगा
किसानों को खेत
व्यापारियों को देने होंगे
गाँव भी खुशहाल होंगे
अब सबके पेट भर सकेंगे
मजदूरी के अवसर बढ़ेंगे
भारत शहरों का देश बने
गाँवों से त्याग अपेक्षित है।
© Guddu Srivastava