16 views
अगर वक्त मिले
अगर कभी वक्त मिले
तो बैठना मेरे सिरहाने
मिल कर दोहराएंगे हम
वो भूले बिसरे हुए तराने
वो बचपन के खेल अनूठे
वो अल्हड़ उम्र के ख्वाब
वो वक्त की दहलीज पर मिली ठोकरें
वो हमारी हिम्मतों के जवाब
वो ख़्वाब जो मंजूर-ए-दस्तूर हुए
वो उम्मीदों के शब जो चकनाचूर हुए
वो जो पा कर खो दिया
वो जो भूला कर रो दिया
कितना कुछ बीत गया,
समय सुहाना रीत गया
आओ, अब तो बैठो पास मेरे
या अब भी है दुनिया के घेरे!?
© Reema_arora
#MyMusings #poem #lifehappens #original
तो बैठना मेरे सिरहाने
मिल कर दोहराएंगे हम
वो भूले बिसरे हुए तराने
वो बचपन के खेल अनूठे
वो अल्हड़ उम्र के ख्वाब
वो वक्त की दहलीज पर मिली ठोकरें
वो हमारी हिम्मतों के जवाब
वो ख़्वाब जो मंजूर-ए-दस्तूर हुए
वो उम्मीदों के शब जो चकनाचूर हुए
वो जो पा कर खो दिया
वो जो भूला कर रो दिया
कितना कुछ बीत गया,
समय सुहाना रीत गया
आओ, अब तो बैठो पास मेरे
या अब भी है दुनिया के घेरे!?
© Reema_arora
#MyMusings #poem #lifehappens #original
Related Stories
45 Likes
9
Comments
45 Likes
9
Comments