सुप्रभात "प्रार्थना"
उदित होकर सुबह सूरज, फुहारा दे रहा सबको।
सजाया आस में है जो, सहारा दे रहा सबको।
सभी का ईश्वर बनकर, सभी में सब समाहित कर,
हुआ है नतमस्तक मालिक, किनारा दे रहा सबको।।
करो अंगार से भी प्रेम, पानी से रखो चाहत,
सजा संसार है उससे, जो सारा दे रहा सबको।
रही गर जिंदगी कायम, बताऊंगा कई अचरज,
यहां पत्थर पर निर्भर सब, नजारा दे रहा सबको।
हजारों बार झुककर मैं, किया सजदा दफा...
सजाया आस में है जो, सहारा दे रहा सबको।
सभी का ईश्वर बनकर, सभी में सब समाहित कर,
हुआ है नतमस्तक मालिक, किनारा दे रहा सबको।।
करो अंगार से भी प्रेम, पानी से रखो चाहत,
सजा संसार है उससे, जो सारा दे रहा सबको।
रही गर जिंदगी कायम, बताऊंगा कई अचरज,
यहां पत्थर पर निर्भर सब, नजारा दे रहा सबको।
हजारों बार झुककर मैं, किया सजदा दफा...