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सुप्रभात "प्रार्थना"
उदित होकर सुबह सूरज, फुहारा दे रहा सबको।
सजाया आस में है जो, सहारा दे रहा सबको।

सभी का ईश्वर बनकर, सभी में सब समाहित कर,
हुआ है नतमस्तक मालिक, किनारा दे रहा सबको।।

करो अंगार से भी प्रेम, पानी से रखो चाहत,
सजा संसार है उससे, जो सारा दे रहा सबको।

रही गर जिंदगी कायम, बताऊंगा कई अचरज,
यहां पत्थर पर निर्भर सब, नजारा दे रहा सबको।

हजारों बार झुककर मैं, किया सजदा दफा जितनी,
हमारा देव ही तो है, दुबारा दे रहा सबको।

झुकोगे यदि जरूरत भर, उठोगे स्वर्ग के जैसे,
सभी में है समाहित जो, वो प्यारा दे रहा सबको।

चुरा सकते चुरा लो तुम, अमीरी दर्द से अपनी,
यहां तकलीफ ही मालिक, गुजारा दे रहा सबको।

मिटा देता सभी का है अहम, सबका जो है मालिक,
मिटा देता सभी तकलीफ, सारा दे रहा सबको।

चिरागों से चुराकर रोशनी, बेकार मत होना,
चमक सबको दिया उसने, सितारा दे रहा सबको।

तुम्हारा भी सहारा है, तुम्हें जिसने बनाया है,
परवरिश कर सभी की वह, बखारा दे रहा सबको।

सभी चाहत रखो मन में, हसरतें पूर्ण होनी हैं,
जनम जिसने दिया है वह, करारा दे रहा सबको।





© Dr.parwarish