...

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एक आसू
एक आसू देखकर उसकी हसी खो जाती है,
एक आसू देखकर वो दौडी चली आती है,
क्या मेरी ही माँ ऐसी है?
या सबकी भी होती है

एक आसू भी जमीन पर गिरने नहीं देती है,
पीठ पे हाथ फेरकर उनको भगा देती है,
क्या मेरी ही माँ ऐसी है?
या सबकी भी होती है

एक आसू उसको पिघलाने के लिये काफी है
एक आसू ही हसी को गम में बदलने के लिये काफी है,
क्या मेरी ही माँ ऐसी है?
या सबकी भी होती है

बचपण में मेरी गलती पर जो मार मिलती थी
वो भी कभी काम आयेगा ये में आज समझी,
क्या मेरी ही माँ ऐसी है?
या सबकी भी होती है

एक आसू नहीं बल्की उनका समुद्र समाई होगी
मुझसे क्या वो खुद से भी छुपाये होगी,
समझाती मुझे, साथ खुद को भी है
वो इतना सब कैसे कर लेती है?
© Prachi
#prachi_writings