...

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तेरे इश्क़ का मरहम
तेरे इश्क़ का मरहम ज़रुरी है
कौन यहाँ किसी का तू ज़रुरी है

बिन तेरे पूछता कौन भला जहाँ मे
अकेला तू है साथ तुझसें क्यूँ दूरी है

मिल जाये चाहें ये सारा जहाँ क्यूँ ना
तन की साँसे बिन तेरे यूँ ही अधूरी है

तू कर मुझे पूरा अभी हूँ आधा अधूरा
बदल आदतों को जो मेरी मजबूरी है

वक़्त है कहाँ साँसे बहुत कम बाक़ी
इबादत ये कहाँ इबादत भी जो पूरी है

तू कर सफ़र मेरा आसान कई कोसो की
मंज़िल तक अभी बाक़ी साँसो की दूरी है

लाज़मी नही कुछ मिले ना मिले मुझकों
वास्ते मेरे इक़ तू ही "मुर्शद " बस ज़रुरी है।

© अनिल अरोड़ा "अपूर्व "