...

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आजादी
जब चारों ओर विध्वंस था, देहशकपुर्ण जो प्रपंच था,
तब एक ही भाव ध्यान था और तब वही प्रधान था,
कि स्वराज हो मुकुट और स्वाधीनता हो तिलक सिर का,
जंजीरें तोडेगे गुलामी की और आरंभ करेंगे नवजीवन का|

जुल्मी और अत्याचारीयों को घुटनों के बल बिठाया था,
धर दिया उन धडों को जिसने माँ भारती को रुलाया था ,
हर कण कण हर रोम रोम ने स्वतंत्रता का गीत गाया था, स्वाभिमानी रहेगें सर्वथा यही संकल्प सभी ने अपनाया था|

कई दीपक बुझे, कई कोके उजड़ी
कई राखियाँ टूटी, कई चुड़ियाँ टूटी
आखें नम थी, बाते कम थी दरिद्र था प्रकल्प
कुछ टूटा न था तो वो था केवल संकल्प|

आजादी के संग्राम मे जो जाने हमने गवाई थी,
बयान न कर सकूँ वो कल्पना ही कितनी दुखदाई थी,
उन समस्त वीर वीरांगनाओ को मैं कोटि कोटि नमन करूँ आखिर कुछ आजादी शहीदों ने तो कुछ चरखे ने दिलाई थी|

© Swaroop