तुम चंचल
चहक रही थी चिड़िया
मेरे घर की आंगन में
वो चमक रही थी बैठी
अपने घर की आंगन में,
वो आ रही थी छतपे
बचके सबकी नजरों में
उसका चमक रहा था चेहरा
जैसे चमके चंदा आसमां में
वो देख रही थी हमको
कलियों का खिलना जैसे
मुस्का रही थी ऐसे
सूरज की किरणों जैसे
वो चहक रही थी ऐसे
चहकी हो चिड़िया जैसे
मैं अटक गया था आकर
उसके तन और मन में
वो चमक रही थी बैठी
अपने घर की आंगन में I
© सोमनाथ यादव
मेरे घर की आंगन में
वो चमक रही थी बैठी
अपने घर की आंगन में,
वो आ रही थी छतपे
बचके सबकी नजरों में
उसका चमक रहा था चेहरा
जैसे चमके चंदा आसमां में
वो देख रही थी हमको
कलियों का खिलना जैसे
मुस्का रही थी ऐसे
सूरज की किरणों जैसे
वो चहक रही थी ऐसे
चहकी हो चिड़िया जैसे
मैं अटक गया था आकर
उसके तन और मन में
वो चमक रही थी बैठी
अपने घर की आंगन में I
© सोमनाथ यादव