...

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फर्क इंसान का
वो वर्दी वाला था इसलिए ,
धाक जमाते इज्जत न की उस इंसान की ,
बस फर्क इतना था !
उसके कपड़े मैले कुचैले ,
वो साफ खाकी वर्दी वाला,
पैसा उसके भी जेब के था,
बस फर्क इतना था ,
उस के मेहनत की कमाई ,
उसके जैसे मिट्टी से रंगी हुई ,
और इसके दूसरे के हाय से लूटे हुए ।

ड्राइवर वो भी है ड्राइवर वो अमीर भी !
बस फर्क इतना था ,
वो पेट भरने के लिए चलाता है ,
और वो अमीर शौख के लिए चलाता है ,
वो गरीब घर को चलने के लिए ड्राइवर बना है ,
वो अमीर परिवार घुमाने के लिए चलाता है,
वो बीच ट्रैफिक में चार गलियां सुन कर चुप रहा जाता है ।
वो अमीर गाली देकर निकल जाता है ,
जबकि बैठे दोनो एक राह पर ,
उतने महंगी वो टैक्सी भी ,
उतना महंगा वो कार भी ,
बस फर्क इतना है ,
वो गरीब चलाता वो अमीर चलाता।


@ख़ामोश अल्फाज़
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