...

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रावण युग... ( कलयुग...)
कौन कहता है की वो स्वच्छ है
यहाँ तो हर नज़र में चल और कपट है
हाँ, दिखावे की इस दुनिया में
न नाते है और न मोहोब्बत है
मुखौटे के पीछे छिपा है हर शक्स
ऊपर से राम और भीतर से रावण का अक्स है

क्या सतयुग और क्या कलयुग है
हर युग में मिलता धोका जरूर है
गैरों की आदत से कोई अंजान नही
बस अपनों की खोट से मेहरूम है
दिखावा है बस, ना कोई भूल है
कांटों से भरा हुआ एक गुलाब का फूल है
मुखौटे के पीछे छिपा है हर शक्स
ऊपर से राम और भीतर से रावण का अक्स है...

ये रोज की दौड़ तो बस एक बहाना है
किसी को दफन तो किसी को राख...