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कहलाते हैं परिंदे प्यार के

तोड़कर बंधन छोड़कर क्रंदन,
धारणा है स्वच्छंद विचार के।
खिजां में भी हँसते गुलाब सा,
अनुभूति हो बसंत बहार के।
पल दो पल की ख़ुशी के लिए,
अपना सम्पूर्ण जीवन वार के।
मदमस्त मतवाले चिंतारहित,
कहलाते हैं परिंदे प्यार के।


उन्मुक्त गगन की आकांक्षा,
व्याधियों की नज़रों से दूर।
हंसी खुशी हो या गमजदा,
ज़िन्दगी जीने को मजबूर।
भय आतंक कर दर किनार,
एक दूजे का रूप निहार के।
मदमस्त मतवाले चिंतारहित,
कहलाते हैं परिंदे प्यार के।


लाख जतन करते हैं पर,
जो प्यार छुपा नहीं पाते हैं।
कुरीतियों के होते हैं शिकार,
व्याधियों के भेंट चढ़ जाते हैं।
हर कोई सफल तो नहीं होता,
कुछ तोड़ते हैं दम हार के।
मदमस्त मतवाले चिंतारहित,
कहलाते हैं परिंदे प्यार के।

🙏🌷 मधुकर 🌷🙏
© 🙏🌹 मधुकर 🌹🙏