...

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तलब
कुछ अनकही, गुनगुनाती हुई
जिंदगी की तलब है कि जाती नहीं
कुछ अनकही, गुनगुनाती हुई

एक समंदर,दो किनारे
नीचे जमीं के खुले आसमां में
रुई सी,कोमल मखमली यादें
भूले से भी भूलाते नहीं
जिंदगी की तलब है कि जाती नहीं

चल ,चलें इन्हीं के ,सहारे
बिखरे हुए उम्मीदें मिलाके
आगे बढे, कि रुलातीं है यादें
यादें हैं कि जाती नहीं
जिंदगी की तलब है कि जाती नहीं

मैंने सुनी है बादलों की बातें
रोते हुए पूरी बीती है रातें
पर बीत जातीं हैं ,जैसे धुआं है
फिर मोह लगी कि जाती नहीं
जिंदगी की तलब है कि जाती नहीं

© Gitanjali Kumari