...

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क़लम
कुछ राज़ नए, खोलती है क़लम,
कुछ अनदेखी तस्वीरें, दिखाती है क़लम
जब भी चलती है, काग़ज़ पर यूँ हीं,
कुछ अनकही बाते, लिखती है क़लम
हम ढुंढते रहते है, मिलने के बहाने,
वो खतों से बात अपनी, कहती है क़लम
कभी उलझते हैं रिश्ते, आपसी मनमुटाव के कारण,
बस एक ही लफ्ज़ "साॅरी" लिखकर,
रिश्तों को और मजबूत बनाती है क़लम
दुनियाँ भरी पड़ी है, अलग-अलग लोगों से,
लोगों की इस भिड़ में, अपनों को पहचानती है क़लम
जब भी चलती है, तो कुछ न कुछ तो काग़ज़ पर उतारती है क़लम।
_पहल