मज़ाक
ऊपरवाला भी कभी- कभी
इस हदतक मज़ाक करता है
खुशियां आईने में दिखाकर
मेरे ग़मों का हिसाब करता है।
बड़ा नादां है मिरा दिलबर
हंस- हंसकर आदाब करता है
खुलकर मिलता है मिरे रक़ीब से
और हमसे हिज़ाब करता है।
गिन गिन के खंजर घोंपे हैं
हमराज़ ने ही मिरी पीठ पर
ना जाने किसके इशारे पे
ज़ख्म बेहिसाब करता है।
ये मिरी क़िस्मत का लेखा है
या मुनाफिक मोहब्बत का...
इस हदतक मज़ाक करता है
खुशियां आईने में दिखाकर
मेरे ग़मों का हिसाब करता है।
बड़ा नादां है मिरा दिलबर
हंस- हंसकर आदाब करता है
खुलकर मिलता है मिरे रक़ीब से
और हमसे हिज़ाब करता है।
गिन गिन के खंजर घोंपे हैं
हमराज़ ने ही मिरी पीठ पर
ना जाने किसके इशारे पे
ज़ख्म बेहिसाब करता है।
ये मिरी क़िस्मत का लेखा है
या मुनाफिक मोहब्बत का...