!...खुद की पहचान हूं मैं खुद...!
बुलंदी से बहुत दूर हूं पस्ती का डर नहीं
बेख़ौफ़ हूं इस कदर, किसी का डर नहीं
खुश हूं नसीब से, जो कुछ मिला मुझे
मंज़िल कि तलब में शामिल जो मैं नहीं
दौलत ओ शौहरत से, बेफिक्र हूं बहुत
दिल ओ दुनिया की मुझे फिक्र भी नहीं
कैद हूं मगर आजाद हूं मैं इस कदर
हूं मैं जिस जगह वहां...
बेख़ौफ़ हूं इस कदर, किसी का डर नहीं
खुश हूं नसीब से, जो कुछ मिला मुझे
मंज़िल कि तलब में शामिल जो मैं नहीं
दौलत ओ शौहरत से, बेफिक्र हूं बहुत
दिल ओ दुनिया की मुझे फिक्र भी नहीं
कैद हूं मगर आजाद हूं मैं इस कदर
हूं मैं जिस जगह वहां...