...

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दर्पण और एक चेहरा:)
#दर्पणप्रतिबिंब

मैंने देखा उसे वह बिल्कुल मेरे जैसी दिख रही थी पर मैं उसे पहचानती नहीं थी पर मानो लग रहा था वह मुझे जानती हो कोई गहरा नाता हो हमारा ऐसा मुझे तब महसूस हुआ जब वह मेरा साथ देने लगी मैं मुस्कुराती तो वह ..वह भी मुुस्कुराती मेरी आंखें नम होती तो उसकी भी.. पता नहीं क्यों अजीब लग रहा था क्योंकि शायद पहली बार कोई इतना साथ दे रहा था इसी बीच मेरी काजल लगाती नम आंखों से एक अश्क गिरा...
मेरी कलम पर जिसने कहा बिन कहे कि आखिर इतना प्रेम इस अधूरी लिखावट से ?
...कि तुमने अपना कि तुमने अपनी पूरी बनावट सजावट को पीछे छोड़ आई...!!

यह कोई नया सवाल नहीं था मेरे लिए मेरे दर्पण का प्रतिबिंब अब मुझे नहीं पहचानता मैं उसे नहीं जानती अगर कोई मुझसे मिलने को आता है तो मैं खुद को बुला कर लाती हूं....!!
© AdhuriLikhawat

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