...

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माता पिता का जीवन....
एक पिता जिसने अपनी सारी खुशियां
त्याग दी दो बच्चों को पालने में।
और खुद कभी भी संभल ना पाया उनके लड़खड़ाते कदम संभालने में।

वो पिता आज वृद्धाश्रम में बैठे हैं और प्रतीक्षा कर रहें हैं कि वो आएंगे।
शायद अपने बचपन को याद कर उन्हें फिर से सहारा दे अपने घर ले जाएंगे।

बेटों ने कह दिया आपको सलीका नहीं अपनी बहुओं के साथ रहने का।
जिन पर लुटा दी अपनी पूरी कमाई उन्होंने
कर दिया हिसाब खाने पीने का।

एक मां जो दोनों को सीने से लगा कर कहती थी कभी मुझसे दूर ना होना।
ऐसा कभी इस ज़िन्दगी में दर्द ना देना कि मेरी बेकसूर आंखों को पड़े रोना।

वो मां स्टेशन पर बैठी उन दोनों को याद कर भीख मांग रही है जीने के लिए।
ऐसे में हिम्मत पता नहीं कहां से लाई वो इस तरह ज़हर का घूंट पीने के लिए।

बहू ने कह दिया कि गुज़ारा नहीं हो सकता एक छत के नीचे आपके साथ।
ये छत उसके अपने पति की पेंशन से बनाई थी वो कैसे भूल गई ये बात।

माता पिता वृद्ध हो जाएं तो पता नहीं क्यों एकाएक बोझ लगने लगते हैं।
जिनसे सीखा आपने चलना और बोलना आप उन्हीं को ठगने लगते हैं।

जिन्होंने अपना सर्वस्व दे दिया सिर्फ आपकी अच्छी परवरिश के लिए।
क्या उनका कोई अधिकार नहीं कि वो भी सम्मान का जीवन जिएं?

आज उनकी बहू ने अपने बेटे को सीने से लगा कर कहा कभी मुझसे दूर ना होना।

अब देखते हैं आगे क्या होगा?

by Santoshi